lehrein


जाने कहाँ से बहता हुआ 
एक भूला सा लम्हा,
लहरों के सहारे
किनारे तक उतर आया.
 
आँखों में बंद
उन गुदगुदाते पलों
की यादें पैरों पर  
आती रेत में बहा लाया.   

सोचें तो, आती-जाती इन लहरों ने जाने
कितने ही घरौंदे बिखेरे होंगे
कई मुस्कुराहटें और कई उम्मीदों
के टीले साहिल से उधेड़े होंगे.

बहुत सी अधूरी  कहानियाँ,  
कई अनकही बातें,
किसी की हंसी, तो किसी के  
आंसुओं के नमकीन फ़साने 
यहीं बह रहे होंगे. 

वैसे, लहरों में आशिकों  के
किस्से भी बहुत से होंगे
इज़हार-इ मुहब्बत
माशूका से पहले
भला और किसने सुने होंगे... 

अपनी गहरायीओं में समेटे 
जाने कितने दिल और दीवाने बह रहे होंगे...